
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भरण-पोषण से जुड़े एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि पत्नी आर्थिक रुप से आत्मनिर्भर है और नौकरी कर रही है, तो वह अपने पति से गुजारा भत्ता (Maintenance Allowance) पाने का दावा नहीं कर सकती है, कोर्ट ने इस आधार पर फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें पति को पत्नी को गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था।
यह भी देखें: माझी लाडकी बहिन योजना में धांधली पर सरकार का एक्शन! गलत तरीके से पैसा लेने वालों से होगी कड़ी वसूली
Table of Contents
क्या था मामला?
दरअसल, फैमिली कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के बाद पति को अपनी पत्नी को ₹1,000 प्रति माह का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था, पति ने इस आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी, पति का तर्क था कि उसकी पत्नी एक शिक्षिका के रुप में कार्यरत है और अच्छी आय अर्जित कर रही है।
हाईकोर्ट की टिप्पणी
जस्टिस रेवती मोहना डेरे और जस्टिस आरएन खोसे की डिवीजन बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए पाया कि पत्नी वास्तव में नौकरीपेशा थी और वह प्रतिमाह ₹12,000 कमा रही थी।
पीठ ने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 का उल्लेख करते हुए कहा कि इस धारा के तहत गुजारा भत्ते का प्रावधान मुख्य रुप से उन आश्रित पत्नियों के लिए किया गया है जो अपना भरण-पोषण करने में अक्षम हैं, कानून का उद्देश्य ऐसी महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है, न कि उन महिलाओं को जो पहले से ही आर्थिक रूप से मजबूत हैं।
यह भी देखें: EPFO Rule Update: ₹15,000 से ज्यादा सैलरी वालों के लिए PF अनिवार्य है या नहीं? EPFO ने साफ किया नियम
फैसले का निहितार्थ
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चूंकि पत्नी कमाऊ है और खुद का खर्च उठाने में सक्षम है, इसलिए फैमिली कोर्ट का गुजारा भत्ता देने का आदेश कानूनी रूप से सही नहीं था, इस फैसले के बाद, फैमिली कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया गया।
यह फैसला भरण-पोषण के मामलों में एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम करता है, जिसमें पत्नी की आर्थिक स्थिति और आत्मनिर्भरता को गुजारा भत्ता तय करने का एक प्रमुख आधार माना गया है।

















