आर्य समाज विवाह पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, ‘सप्तपदी’ के बिना सर्टिफिकेट मान्य नहीं, सिर्फ गाना-बजाना शादी नहीं!

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ ने हिंदू विवाह की वैधता को लेकर एक दूरगामी और महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत 'सप्तपदी' (सात फेरे) जैसे अनिवार्य वैदिक अनुष्ठानों के पालन के बिना, अकेले आर्य समाज मंदिर द्वारा जारी किया गया विवाह प्रमाण पत्र कानूनी रूप से मान्य विवाह का निर्णायक सबूत नहीं माना जा सकता है

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आर्य समाज विवाह पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, ‘सप्तपदी’ के बिना सर्टिफिकेट मान्य नहीं, सिर्फ गाना-बजाना शादी नहीं!
आर्य समाज विवाह पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, ‘सप्तपदी’ के बिना सर्टिफिकेट मान्य नहीं, सिर्फ गाना-बजाना शादी नहीं!

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ ने हिंदू विवाह की वैधता को लेकर एक दूरगामी और महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ‘सप्तपदी’ (सात फेरे) जैसे अनिवार्य वैदिक अनुष्ठानों के पालन के बिना, अकेले आर्य समाज मंदिर द्वारा जारी किया गया विवाह प्रमाण पत्र कानूनी रूप से मान्य विवाह का निर्णायक सबूत नहीं माना जा सकता है।

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जस्टिस दीपक कुमार अग्रवाल की एकल पीठ ने विवाह की प्रकृति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि विवाह केवल “नाचने-गाने, खाने-पीने” या सामाजिक मनोरंजन का कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह एक पवित्र धार्मिक और सामाजिक “संस्कार” है, अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि विवाह समारोह में आवश्यक धार्मिक कृत्यों और रीति-रिवाजों का पालन किया जाना अनिवार्य है।

फैमिली कोर्ट का आदेश निरस्त

यह फैसला एक मामले की सुनवाई के दौरान आया, जिसमें एक महिला ने सेवानिवृत्त सेना कमांडेंट की पत्नी होने का दावा किया था और गुजारा भत्ता मांगा था। फैमिली कोर्ट ने केवल आर्य समाज द्वारा जारी प्रमाण पत्र और नगर निगम के रजिस्ट्रेशन के आधार पर महिला के पक्ष में फैसला सुनाया था।

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के इस आदेश को त्रुटिपूर्ण मानते हुए रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि केवल दस्तावेजीकरण विवाह का आधार नहीं हो सकता, इसके लिए आवश्यक अनुष्ठानों का भौतिक रूप से किया जाना सिद्ध होना चाहिए।

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हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 की अनिवार्यता

अदालत ने अपने फैसले में ‘हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7’ का हवाला दिया। इस धारा के अनुसार, विवाह तब तक पूर्ण और वैध नहीं माना जाता जब तक कि विवाह के दोनों पक्षों के पारंपरिक रीति-रिवाजों और समारोहों, विशेष रूप से ‘सप्तपदी’ को विधिवत रूप से अग्नि के समक्ष पूरा नहीं किया जाता।

प्रमाण का भार याचिकाकर्ता पर

हाईकोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि विवाह के अस्तित्व का दावा करने वाले पक्ष पर यह साबित करने का कानूनी दायित्व होता है कि विवाह के सभी आवश्यक रीति-रिवाज गवाहों के सामने और उचित प्रक्रिया से संपन्न हुए थे।

इस फैसले ने आर्य समाज मंदिरों में होने वाले तत्कालिक विवाहों की कानूनी स्थिति को लेकर एक महत्वपूर्ण न्यायिक दृष्टिकोण स्थापित किया है, जिसमें अनुष्ठानों की अनिवार्यता को दस्तावेजी प्रमाण पत्रों से ऊपर रखा गया है।

Arya Samaj Certificate Insufficient Proof of Marriage Without Saptapadi MarriageHigh Court
Author
Pinki

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