
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने करेंट अकाउंट को लेकर बड़े बदलावों की घोषणा की है। नए दिशा-निर्देशों का मकसद बैंकों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना, फंड डायवर्जन पर रोक लगाना और बैंकिंग सिस्टम में अनुशासन लाना है। ये नए नियम 1 अप्रैल 2026 से लागू होंगे, और खास तौर पर बड़े कर्जदारों पर इनका प्रभाव पड़ेगा।
Table of Contents
छोटे व्यवसायों और ग्राहकों को राहत
आरबीआई ने साफ किया है कि जिन ग्राहकों पर बैंकिंग सिस्टम में कुल कर्ज 10 लाख रुपये से कम है, वे इन नियमों से प्रभावित नहीं होंगे। ऐसे व्यक्ति या व्यवसाय अपनी सुविधा के अनुसार करेंट अकाउंट खोल सकते हैं। यह कदम छोटे व्यवसायों और MSME सेक्टर के लिए राहतभरा माना जा रहा है, क्योंकि इस श्रेणी में आने वाले अधिकतर ग्राहकों पर बड़े पैमाने का कर्ज नहीं होता।
बड़े कर्जदारों के लिए सख्त नियम
RBI के नए निर्देशों के तहत जिन ग्राहकों का कुल बकाया कर्ज 10 करोड़ रुपये से अधिक है, उनके लिए करेंट अकाउंट खोलने के नियम सख्त कर दिए गए हैं। अब ऐसे कर्जदार केवल उसी बैंक में करेंट अकाउंट या कैश क्रेडिट/ओवरड्राफ्ट (CC/OD) अकाउंट खोल सकेंगे, जिसकी उनके कुल ऋण में कम से कम 10 फीसदी हिस्सेदारी हो।
इस बदलाव का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जिस बैंक की ग्राहक के लोन में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी हो, वही उसके नकदी प्रवाह को मॉनिटर कर सके। इससे फंड डायवर्जन (धन का गलत उपयोग) की संभावना कम हो जाएगी और बैंकों को ग्राहक की वित्तीय गतिविधियों पर पारदर्शी निगरानी मिल सकेगी।
कम हिस्सेदारी वाले बैंक खोल सकेंगे केवल ‘कलेक्शन अकाउंट’
जिन बैंकों की ग्राहक के लोन में हिस्सेदारी 10% से कम है, वे अब केवल ‘कलेक्शन अकाउंट’ खोल सकेंगे। यह ऐसा खाता होगा जिसमें पैसा केवल जमा (क्रेडिट) किया जा सकेगा, पर निकाला (डेबिट) नहीं जा सकेगा।
कलेक्शन अकाउंट में जमा हुई राशि को दो दिन के भीतर ग्राहक के उस ‘मेन अकाउंट’ या ‘एस्क्रो अकाउंट’ में ट्रांसफर करना होगा जो 10% हिस्सेदारी वाले बैंक में मौजूद है। इस व्यवस्था से बैंकिंग लेनदेन में पारदर्शिता बढ़ेगी और एक ही समय में कई जगह पैसे घुमाने की प्रवृत्ति पर लगाम लगेगी।
मनी रूटिंग और थर्ड पार्टी ट्रांजैक्शन पर रोक
RBI ने स्पष्ट किया है कि अब किसी भी बैंक या ग्राहक को थर्ड पार्टी के माध्यम से पैसे रूट करने की अनुमति नहीं होगी। मनी रूटिंग, यानी किसी तीसरे खाते के जरिए पैसे ट्रांसफर करने की प्रैक्टिस, बैंकिंग पारदर्शिता के लिए खतरा मानी जाती है। इसके तहत बैंक अब ऐसे किसी अकाउंट में नकद जमा, निकासी, चेक बुक, या डेबिट कार्ड की सुविधा नहीं देंगे जो ‘एलिजिबल बैंक’ की सीमा में नहीं आता।
हर छह महीने में खातों की जांच अनिवार्य
नए दिशा-निर्देशों के तहत बैंकों को अब हर छह महीने में ऐसे खातों की समीक्षा करनी होगी जो इन नियमों का उल्लंघन कर सकते हैं। अगर कोई खाता नियमों के विपरीत पाया जाता है, तो बैंक को ग्राहक को 1 महीने का नोटिस देना होगा। इसके बाद अधिकतम 3 महीने के भीतर या तो उस खाते को बंद करना होगा या उसे ‘कलेक्शन अकाउंट’ में परिवर्तित करना होगा।
इतना ही नहीं, बैंकों को अपने कोर बैंकिंग सिस्टम (CBS) में इन खातों को “फ्लैग” करना अनिवार्य होगा ताकि आगामी जांच में इन्हें आसानी से पहचाना जा सके।
क्यों जरूरी हैं ये बदलाव?
बीते कुछ सालों में कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें कंपनियों ने एक साथ कई बैंकों में करेंट अकाउंट खोलकर फंड रूटिंग और कर्ज का गलत इस्तेमाल किया। इससे बैंकिंग सिस्टम पर जोखिम बढ़ा और रिकवरी कठिन हुई। यही वजह है कि आरबीआई ने अब यह स्पष्ट ढांचा तैयार किया है जिससे हर बैंक अपनी हिस्सेदारी के अनुसार निगरानी रख सके और धन के गलत इस्तेमाल को रोका जा सके।

















