
विदेश मंत्रालय (MEA) ने संसद में बताया है कि पिछले पाँच वर्षों (2020-2024) में लगभग 9 लाख भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी है सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, यह संख्या लगातार बढ़ रही है और 2022 से हर साल दो लाख से अधिक भारतीय अपनी नागरिकता त्याग रहे हैं।
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आंकड़ों पर एक नजर
विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने लोकसभा और राज्यसभा में लिखित जवाब में ये आंकड़े पेश किए। वर्षवार ब्यौरा इस प्रकार है:
- 2020: 85,256
- 2021: 1,63,370
- 2022: 2,25,620
- 2023: 2,16,219
- 2024: 2,06,378
कुल मिलाकर, पिछले पाँच वर्षों में 8,96,843 भारतीयों ने नागरिकता छोड़ी है। 2011 के बाद से कुल 20.9 लाख से अधिक भारतीयों ने अपना पासपोर्ट सरेंडर किया है।
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नागरिकता छोड़ने का कारण
मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि नागरिकता छोड़ने के पीछे के कारण व्यक्तिगत होते हैं और प्रत्येक व्यक्ति के लिए भिन्न हो सकते हैं, सरकार के पास इन व्यक्तियों के आय प्रोफाइल या व्यवसायों के बारे में जानकारी नहीं है। हालांकि, सामान्य तौर पर इसके पीछे ये कारक माने जाते हैं:
- लोग विदेशों में नौकरी और बेहतर करियर की संभावनाओं के लिए प्रवास करते हैं।
- बेहतर जीवन स्तर, शिक्षा और सुविधाओं की तलाश में लोग दूसरे देशों में बसना पसंद करते हैं।
- कई मामलों में, लोग अपने परिवार के साथ फिर से बसने के लिए विदेशी नागरिकता अपनाते हैं।
- भारतीय संविधान दोहरी नागरिकता की अनुमति नहीं देता है, इसलिए विदेश में बसने के लिए भारतीय नागरिकता छोड़नी पड़ती है।
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सरकार का कहना है कि वह वैश्विक स्तर पर भारतीय समुदाय की क्षमता को पहचानती है और एक सफल, समृद्ध और प्रभावशाली प्रवासी भारतीयों को देश के लिए एक संपत्ति मानती है।

















